हम आपके लिए NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 1 सूरदास-पद हिंदी क्षितिज Book के प्रश्न उत्तर लेकर आए हैं। यह आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस पद का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि वे इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। इसके अलावा आप इस कहानी के अभ्यास प्रश्न भी पढ सकते हो। Surdas ke pd Summary of NCERT solutions for Class 10th Hindi Kshitij Chapter 1.
NCERT Solutions for Class 10th: Hindi Chapter 1 सूरदास Question Answer
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न- अभ्यास
प्रश्न 1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ?
उत्तर-
गोपियों ने उद्धव को भाग्यवान कहकर उन पर तीखा व्यंग्य किया है। उनको स्नेह के बंधन से मुक्त कहकर वस्तुतः वे उन्हें अभागा सिद्ध करना चाहती हैं। उद्धव भले ही बड़े ज्ञानी और योगी हों लेकिन वह प्रेम की मार्मिक अनुभूति से वंचित हैं । जो व्यक्ति किसी का प्रेम न पा सका वह गोपियों की दृष्टि में अभागा है । भाग्यवानों को ही जीवन में प्रेम रस का आनंद प्राप्त होता है ।
प्रश्न 2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है ? (CBSE 2015)
उत्तर-
उद्धव के व्यवहार की तुलना गोपियों ने दो वस्तुओं से की है।
(1) जल के भीतर रहकर भी जल से अप्रभावित रहने वाले कमल के पत्ते से ।
(2) जल में रखी तेल की गगरी से जिस पर जल की एक बूँद भी नहीं ठहर पाती ।
उद्भव भी संसार के बीच रहते हुए सांसारिक विषयों से मुक्त हैं । ज्ञान के अहंकार में वे प्रेम के पवित्र अनुभव से वंचित रह गए हैं ।
प्रश्न 3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं ? (CBSE 2019)
उत्तर- गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं-
(1) गोपियों ने उद्धव से कहा कि उनकी प्रेम भावनाएँ मन की मन में ही दबकर रह गईं। श्रीकृष्ण के व्यवहार ने उनके सारे सपने चूर कर दिए ।
(2) गोपियाँ कहती हैं अब तक हम श्रीकृष्ण द्वारा दी गई मथुरा से लौटने की अवधि पूरा होने पर उनके आगमन की आशा में वियोग की व्यथा सहन कर रही थीं किन्तु आपके इन योग-संदेशों ने तो हमारी विरहाग्नि को और दहका दिया है ।
(3) श्रीकृष्ण ने प्रजा की रक्षा का धर्म भुलाकर योग-संदेश की धारा बहाकर हमें कष्ट दिया है । आपने भी अपने मित्र को सही परामर्श नहीं दिया ।
(4) हे उद्धव ! पहले के भले लोग तो परोपकार के लिए हर समय तत्पर रहते थे । आपके योग-संदेश में तो परोपकार की कोई बात ही नहीं है।
(5) राज-धर्म तो यही है कि प्रजा को सताया न जाए । फिर आप अपने मित्र श्रीकृष्ण को क्यों नहीं बताते कि वह हम (गोपियों को क्यों सता रहे हैं ?
प्रश्न 4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया ?
उत्तर-
श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ उनके वियोग से व्यथित रहती थीं। वे श्रीकृष्ण के लौट आने की आशा पर विरह की तपन को झेल रही थीं लेकिन उद्भव के योग संदेशों ने उनको विरहाग्नि को भड़काने में वही काम किया जो आग को तेज जलाने में भी करता है
प्रश्न 5. 'मरजादा न नहीं' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है ? (CBSE 2012)
उत्तर -
प्रेम की मर्यादा है- परस्पर विश्वास और पूर्ण समर्पण अविश्वास और स्वार्थ प्रेम के शत्रु है। छल, कपट, चतुराई और दुराव प्रेम को मर्यादा को भंग कर देते हैं। श्रीकृष्ण ने वचन तो तोड़ा हो, योग-संदेश भिजवाकर गोपियों के विश्वास को भी भंग कर दिया । वह प्रेम निभाने में पूरी तरह असफल सिद्ध हुए । 'मरजादा न सही' के माध्यम से प्रेम की मर्यादा नष्ट होने की बात कही गई है।
प्रश्न 6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ? (CBSE 2015, 2017)
उत्तर-
गोपियाँ श्रीकृष्ण की अनन्य प्रेमिकाएँ है। उन्होंने कृष्ण के प्रति अपने प्रेमभाव को अनेक रूपों में अभिव्यक्त किया है। उनकी निम्नलिखित उक्तियाँ उनके अनन्य प्रेम की साक्षी हैं
(1) गोपियाँ उद्धव से कहती है कि वे श्रीकृष्ण के प्रेम में उसी प्रकार बंधी हुई है जैसे बीटी गुड़ के साथ पग जाती है।
(2) श्रीकृष्ण को हमने अपने मन में उसी प्रकार सदा के लिए बसा लिया है जैसे हरियल नामक पक्षी लकड़ी को सदैव अपने पंजों में जकड़े रहता है।
(3) हम अब तक श्रीकृष्ण के मथुरा से लौटकर आने की आशा में उनके वियोग के कष्ट को सहन कर रही हैं।
(4) आपके द्वारा दिया गया योग साधना का उपदेश हमको कड़वी ककड़ी के समान लगता है और कभी न देखी सुनी बीमारी प्रतीत होता है।
प्रश्न 7. गोपियों ने उद्भव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है ?
उत्तर-
गोपियों ने उद्धव से कहा कि वह अपने योग की शिक्षा उन लोगों को जाकर दें जिनके मन चलायमान है और जो प्रेम में एकनिष्ठ नहीं है भटकाव और अस्थिर मन वालों के लिए ही उनको योग की शिक्षा हितकारी और लाभप्रद हो सकती है।
प्रश्न 8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
अथवा
गोपियों को उद्भव का संदेश पसंद क्यों नहीं आया ?
उत्तर-
उद्धव ने गोपियों से कहा कि के श्रीकृष्ण को छोड़कर योग साधना करें। योग साधना के शब्द कानों में पड़ते ही गोपियों का मन कड़वाहट से भर जाता है। जिस प्रकार कड़वी ककड़ी मुंह में जाते ही उसे थूक देने का मन करता है, इसी प्रकार योग को ये एक क्षण भी मन में स्थान नहीं देना चाहती है। उनको योग ऐसी 'व्याधि' के समान लगता है जिसे
उन्होंने न कभी देखा है, न सुना है और न अनुभव किया है। उनको श्रीकृष्ण द्वारा प्रेषित योग-संदेश अपने प्रेम के विरुद्ध एक षड्यंत्र प्रतीत होता है। उन योग-संदेश भिजवाना श्रीकृष्ण की कपटपूर्ण राजनीति प्रतीत होती है । वे उद्धव से स्पष्ट रूप से कह देती है कि वह योग की शिक्षा उन लोगों को जाकर दें जिन के मन अस्थिर हैं ।
प्रश्न 9, गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए ? (रा. मा. प. 2014, CBSE 2013, 2015, 2017)
अथवा
राजधर्म का क्या आशय है ? (CBSE 2012)
उत्तर-
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म अपनी प्रजा की रक्षा करना होता है। अच्छा राजा अपनी प्रजा को सताता नहीं है अपितु उसको संकट से बचाता है।
प्रश्न 10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर-
गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी। उनका मन माखन चोर श्रीकृष्ण ने चुरा लिया था। तब श्रीकृष्ण सच्चे प्रेमी थे। मथुरा जाकर वह बदल गए हैं। प्रेम को सरलता त्याग कर उन्होंने राजनीति का छल कपट अपना लिया है। अब वह गोपियों से प्रेम भी नहीं करते। उन्होंने ब्रज में वापस आने के अपने वचन को भी तोड़ा है। ऐसी स्थिति में गोपियाँ चाहती हैं कि उनका मन उनको वापस मिल जाए जिसे श्रीकृष्ण अपने साथ ले गए थे।
प्रश्न 11, गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्भव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर-
संकलित पदों में गोपियों के उद्भव के साथ जो संवाद प्रस्तुत हुए हैं उनसे गोपियों के वाक्चातुर्य, विदग्धता और प्रगल्भता में कोई संदेह नहीं रह जाता। उद्धव गोपियों के आरोपों, व्यंग्यों और कटाक्ष का प्रतिरोध करते या तर्क देते नहीं दिखाई देते हैं। उनके पास गोपियों के तर्कों और शंकाओं का कोई समाधान नहीं है। उद्धव ज्ञानी है, योगी हैं, लेकिन गोपियों के तर्क और मार्मिकता से पूर्ण संवाद उनको निरुत्तर कर देते हैं। गोपियों के वाक्चातुर्य के सामने ज्ञानी उद्भव हथियार डाल देते हैं।
प्रश्न 12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएं बताइए (CBSE 2015)
उत्तर-
भ्रमरगीत प्रसंग सूरदास जी की एक ऐसी अनूठी योजना है जिसने सैकड़ों वर्षों से काव्यप्रेमियों को आनंदित किया है। इस प्रसंग की प्रमुख विशेषताएँ अग्र प्रकार हैं
(1) यह प्रसंग सूरसागर का एक भाग है जिसमें उद्धव और गोपियों के मध्य संवादों की योजना की गई है।
(2) एक भरि को माध्यम बनाकर गोपियों ने उद्भव और कृष्ण को अपने व्यंग्य और कटाक्षों का निशाना बनाया है। इस कारण इस प्रसंग को 'भ्रमरगीत' नाम दिया गया है।
(3) भ्रमरगीत में सूरदास जी का उद्देश्य ज्ञान और योग पर प्रेमश्रित भक्ति भावना की सुगमता और श्रेष्ठता सिद्ध करना रहा है।
(4) भ्रमरगीत में वियोग श्रृंगार रस की उत्कृष्ट और मनोहारी व्यंजना हुई है। गोपियों की विरह व्यथा के साथ हो उनके वाक्चातुर्य, प्रगल्भता, व्यंग्य, कटाक्ष, आरोप, आशा, निराशा, विवशता, उपालम्भ, अनुरोध आदि विविध मनोभावों का हृदयस्पर्शी चित्रण हुआ है।
(5) भ्रमरगीत की भाषा सरस साहित्यिक ब्रजभाषा है। लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग से वह सशक्त हो गई है।
(6) भ्रमरगीत को सूर ने सभी प्रमुख अलंकारों से विभूषित किया है।
(7) भ्रमरगीत के सभी पद संगीतमय है। रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 13. गोपियों ने उद्भव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए ।
उत्तर-
संकलित पदों में गोपियों द्वारा अपने प्रेम-पक्ष के समर्थन तथा उद्धव के योग-संदेश के विरुद्ध अनेक तर्क दिए गए हैं हम अपनी कल्पना से उनके अतिरिक्त निम्नलिखित तर्क दे सकते हैं
(1) योग-साधना का काम कठिन है। उसका उपदेश निर्बल गोपियों को देना ठीक नहीं है।
(2) श्रीकृष्ण तो मथुरा में राज- सुख भोग रहे हैं और गोपियों के लिए योग-साधना का दुःखदायी कर्त्तव्य बता दिया है।
(3) मथुरा में तो उनको अनेक सुन्दरियाँ मिल गई होंगी। अब वह हम गंवार गोपियों को क्यों चाहेंगे ?
(4) उद्धव श्रीकृष्ण ने तुमको योग का संदेश देने नहीं भेजा है। यह तो तुमको प्रेम का मधुर स्वरूप दिखाना चाहते हैं।
(5) सुन्दर और साकार छवि वाले श्रीकृष्ण को त्यागकर हम आप (योगियों) के निर्गुण-निराकार ईश्वर को क्यों अपनाएँ ? आपका गूँगा, बहरा, विकलांग ईश्वर हमारे किस काम आएगा
प्रश्न 14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे। गोपियों के पास ऐसी कौन सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुय में मुखरित हो उठी।
उत्तर-
उद्धव ज्ञानी और नीतिज्ञ अवश्य थे, लेकिन प्रेम के क्षेत्र में उनका अनुभव शून्य था । यदि उनके सामने को में मुखरित हो उठी ? ज्ञानी और तर्क कुशल व्यक्ति होता तो वह शायद उसे अपने ज्ञान और तर्क-शक्ति से परास्त कर देते परन्तु उनके सामने तो व्यंग्य और कटाक्ष में पारंगत प्रेम में समर्पित गोपियाँ थीं। उनके पास न शास्त्रीय तर्क का बल था और न नीति का । वे ती प्रेम के ब्रह्मास्त्र को लेकर उद्भव के सामने डटी हुई थीं । निश्छल, निष्काम और एकनिष्ठ प्रेम ही उनकी शक्ति था जिसके समक्ष उद्धव का सारा ज्ञान और नीतिज्ञता असहाय-सी खड़ी दिखाई देती थी ।
प्रश्न 15. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं ? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर -
घनानन्द ने कहा है-'अति सूधी सनेह की मारग है जहाँ नेकु सानप बाँक नहीं' अर्थात् प्रेम का मार्ग सीधा और सयानेपन से रहित होता है। गोपियों ने ऐसे सीधे तथा सरल प्रेममार्ग को ही अपनाया था अपना सर्वस्व निष्कपट भाव से श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था। उन्हें विश्वास था कि श्रीकृष्ण भी उनसे ऐसा ही प्रेम करते हैं। परन्तु जब उन्होंने उद्धव के मुख से अपने प्रिय श्रीकृष्ण का भेजा योग संदेश सुना तो उनके कोमल हृदयों को बड़ा आघात पहुँचा। वे चकित और सशंकित हो उठीं। श्रीकृष्ण के इस व्यवहार में उन्हें किसी राजनीतिज्ञ के समानेपन और कपट की गंध आने लगी इसी से व्यथित होकर उन्होंने श्रीकृष्ण के राजनीति पढ़ आने की बात कही।
गोपियों के इस कथन का विस्तार वर्तमान राजनीति में स्पष्ट दिखाई देता है। आज राजनीति, राजधर्म अर्थात् प्रजा का हित न होकर छल कपट और मिथ्याचार का पर्याय बन गई है। आज के राजनेता मंच से बड़े-बड़े उपदेश देते हैं परंतु उन पर स्वयं कभी आचरण नहीं करते उन्हें प्रजा के कष्टमय जीवन को कोई चिंता नहीं। उनका लक्ष्य जनहित नहीं है अपि शक्ति और सम्पत्ति का अर्जन करना है। उनके व्यक्तित्व के दोमुँहेपन में गोपियों के कथन की झौंको दिखाई देती है।
Class 10th Sanskrit Solution
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प्रश्न 1. गोपियों की उद्भव द्वारा दिया गया योग का संदेश कैसा लगता है और क्यों ?
उत्तर- गोपियों को उद्धव का योग संदेश कड़वी ककड़ी जैसा अप्रिय और कष्टदायक लगता है ये तो श्रीकृष्ण के मधुर साकार स्वरूप की उपासिका है। योग साधना तो श्रीकृष्ण से वियोग कराने वाली और कष्टसाध्य है। जिस प्रकार कड़वी ककड़ी मुँह में जाते ही उसे कड़ाहट से भर देती है और मनुष्य उसे तुरन्त थूक देता है, उसी प्रकार योग का संदेश गोपियों के मन को निराशा और कष्ट से भर रहा है। ये उसे स्वीकार नहीं कर पा रहीं।
प्रश्न 2. सूरदास, अब धीर धरहिं क्यों, मरजादा न लहीका आशय प्रकट कीजिए। (CBSE 2012)
उत्तर- श्रीकृष्ण के लौटने की अवधि के बीतने की आशा में गोपियों अपने मन को धैर्य बंधाती आ रही थी लेकिन उद्धव के हाथों योग का संदेश पाकर उनके हृदय अधीर हो उठे। उनको अब श्रीकृष्ण पर विश्वास नहीं रहा। व्याकुल मन को धैर्य बँधने का उनके पास अब कोई साधन नहीं बचा था। योग का संदेश भिजवाकर श्रीकृष्ण ने प्रेम की मर्यादा को तोड़ -दिया।
प्रश्न 3. 'नाहीं पात कही' में गोपियाँ अपनी व्यथा क्यों नहीं कह पा रही हैं ?
उत्तर- प्रेमी अपने मन की व्यथा अपने प्रिय पर ही प्रकट करता है। किसी अन्य के सामने अपनी विरह व्यथा सुनाने में संकोच आड़े आता है । गोपियाँ भी इसी कारण व्याकुल हैं। वे अपनी विरह व्यथा किसे सुनाएँ ? उद्धव को सुनाने से कोई लाभ नहीं क्योंकि वह तो ज्ञानमार्गी योगी है। उन्होंने प्रेम को नदी में पैर तक नहीं बया है वह भला उनकी व्यथा को कैसे समझ पाएंगे ।
प्रश्न 4. प्रीति नदी में पाउँन बो में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम को एक पवित्र और दिव्य आनंददायिनी नदी के समान मानती है। उद्धव को इसमें स्नान तो क्या पैर भिगोने तक का सौभाग्य नहीं मिला। इस पर भी गोपियों ने उद्धव को भाग्यशाली कहा है। उनका यह व्यंग्य कथन उद्धव के दुर्भाग्य का ही प्रमाण है वह जीवन के एक पवित्रतम अनुभव से वंचित व्यक्ति है
प्रश्न 5, "मन की मन ही मांझ रही गोपियों की मन की इच्छा उनके मन में ही क्यों रह गई ? (रा. मा. प. 2013 )
उत्तर गोपियों श्रीकृष्ण से अत्यन्त प्रेम करती थीं। वह अपने मन की बात उनसे कहना चाहती थी परन्तु श्रीकृष्ण जब मथुरा गये तो पुनः लौटकर ही नहीं आए। गोपियाँ उनके आगमन की प्रतीक्षा करती ही रह गई । उनको अपने मन की व्यथा उनसे कहने का अवसर ही नहीं मिला ।
प्रश्न 6. गोरियों को श्रीकृष्ण से क्या अपेक्षा थी ? योग-संदेश का उन पर क्या प्रभाव हुआ ?
उत्तर- गोपियों को श्रीकृष्ण से प्रेम-भाव की अपेक्षा थी उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण का संदेश प्रेमरस से परिपूर्ण होगा। उसमें उन्हें सांत्वना और आश्वासन देने वाली बातें होंगी, लेकिन इसके विपरीत योग-संदेश सुनकर उनका धैर्य टूट गया। उन्हें श्रीकृष्ण के प्रेम पर शंका और अविश्वास होने लगा। उन्होंने शुभ होकर श्रीकृष्ण पर राजनीति करने का आरोप लगा दिया ।
प्रश्न 7. गोपियों ने योग- सदिश सुनकर कृष्णा पर अनेक आरोप लगाए और आशंकाएं व्यक्त की हैं। आपके अनुसार श्रीकृष्ण ने योग-संदेश क्यों भिजवाया होगा ?
उत्तर- कंस वध के पश्चात् मथुरा की राजनीतिक स्थिति तथा माता-पिता देवकी वसुदेव के प्रति अपने के कारण कृष्ण को लगा होगा कि उनका निकट भविष्य में सटकर जाना कठिन है। अतः उन्होंने अपने विश्वस्त मित्रव को भेजकर गोपियों का मार्ग-दर्शन करने का प्रयास किया होगा। उनके प्रेम-भाव पर शंका दाँत नहीं प्रतीत होती । सूर ने भी मोहित विसरत नाही' जैसे पदों के द्वारा इसकी पुष्टि की है।
प्रश्न 8. गोपियों के व्यंग्य, कटाक्ष और आरोप सुनकर उदय की क्या दशा हुई होगी ? कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए ।
उत्तर- ज्ञानी और योगी उद्धव बड़े आत्मविश्वास और उत्साह के साथ व्रत में आए होंगे। उन्हें लगा होगा कि अनपढ़ गोपियों को समझाना और संतुष्ट करना कौन-सी बड़ी बात है। लेकिन गोपियों से सामना होने पर और उनके व्यंग्य वचनों को सुनकर उन्हें पता चला होगा कि उनका पाता गंवार वियों से नहीं एक बार प्रगल्भ और प्रेम दीवानी गोपियों से पड़ा है। उनके सहज तर्कों के सामने उनकी बोलती बंद हो गई होगी। स्वयं प्रेम के रंग में रंगकर मथुरा लौट गए होंगे
प्रश्न 9. क्या आप सूरदास के समान उद्भव को भाग्यशाली मानते हैं या नहीं ? अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर सही तर्क देकर स्पष्ट करें। (के. यो प्रति. प्र. पत्र 2009)
उत्तर- ऊधौ,तुम हो अति बड़भागी। इस कथन से यह प्रकट नहीं होता कि सूरदास उद्धव को भारी मानते हैं। इस व्यंग्य कथन में बताया गया है कि श्रीकृष्ण के प्रेम का स्वाद चखने वाले उद्धव बड़े अभागे हैं। ज्ञान मनुष्य का श्रेष्ठ गुण हो सकता है किन्तु जीवन में सच्चा प्रेम करने वाला और सच्चा प्रेम पाने वाला ही भाग्यशाली होता है। अतः हम भी
सूरदास से सहमत है। हम उद्धव को भाग्यशाली नहीं मानते।
प्रश्न 10. गोपियों ने श्रीकृष्ण को हारिल का लकरी' कहकर अपनी किस मनोदशा को व्यक्त किया है ?
अथवा
"हारिल की लकड़ी' का क्या तात्पर्य है? गोपियों ने कृष्ण को हारिल की लकड़ी' क्यों कहा है? (CBSE 2017)
उत्तर- हारिल पक्षी सदैव एक लकड़ी को अपने पंजे में दाये रखता है। वह उसे कभी नहीं जड़ता गोपियाँ भी सोते-जागते, दिन और रात श्रीकृष्ण को ही रट लगाती रहती है। इस प्रकार श्रीकृष्ण को हारिल का लकरी' कहकर गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम और समर्पण भाव को व्यक्त किया है।
प्रश्न 11. उद्धव के चरित्र में किस गुण का अभाव है, जिसके कारण गोपियां उनकी ज्ञान सम्पन्नता को महत्वहीन मानती हैं? समझाकर लिखिए।
उत्तर उद्धव परमज्ञानी निराकार ईश्वर के भक्त तथा योगी थे। यह संसार में रहकर भी मोह-माया से मुक्त थे । उद्धव के ये श्रेष्ठ गुण भी गोपियों की दृष्टि में तुच्छ तथा महत्वहीन से उद्धव ने कभी प्रेमरूपी नदी में अपना पैर भी नहीं डुबोया था । वह किसी के सुन्दर रूप पर नहीं हुए थे। प्रेम-भक्ति के रस को एक बूँद भी उन्होंने नहीं चरखी थी। अत: उनके इसी अभाव के कारण गोपियों को उनकी ज्ञान सम्पन्नता आदि महत्वहीन लगते थे ।
प्रश्न 12. मथुरा जाने से पहले श्रीकृष्ण कैसे थे ? यहाँ जाने के बाद उनमें क्या परिवर्तन हो गए थे? इस पर गोपियों के कथन 'हरि हैं राजनीति पढ़ि आए पर अपनी प्रतिक्रिया दीजिए।
उत्तर - गोपियाँ कहती है कि मथुरा जाने से पहले भी श्रीकृष्ण चतुर थे। वहाँ जाकर उन्होंने गुरु से राजनीतिशास्त्र पढ़ लिया है और ये बहुत सयाने हो गए हैं। तभी तो अपनी अनन्य प्रेमिका गोपियों को योग-संदेश भिजवाया है। श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के विचार अपने हित तक ही सीमित हैं। बदली हुई परिस्थिति में श्रीकृष्ण का कर्तव्य तथा कार्यक्षेत्र विस्तृत हो गया है। वह अपना उत्तरदायित्व छोड़कर केवल गोपियों के प्रेम में डूबे नहीं रह सकते। मेरी प्रतिक्रिया यही है कि परिवर्तित परिस्थितियों में श्रीकृष्ण का व्यवहार अनुचित नहीं है।
प्रश्न 13. संकलित पदों में सूरदास जी ने किस जीवन मूल्य को प्रतिष्ठा प्रदान की है ?
उत्तर- सूरदास जी ने संकलित पदों के माध्यम से प्रेम को महिमामंडित किया है। गोपियाँ प्रेम को सजीव और आदर्श प्रतिमाएँ हैं। अपनी प्रेम-साधना में बाधक हर वस्तु और व्यक्ति उन्हें अस्वीकार है। योग-संदेश वस्तुतः गीपियों की प्रेम-साधना को परीक्षा है जिसमें वे हर दृष्टि से खरी उतरती है। इस प्रकार सूर ने भ्रमरगीत से संकलित इन पदों में महान जीवन-मूल्य 'प्रेम' को प्रतिष्ठित किया है।
प्रश्न 14. 'हरि हैं राजनीति पढ़ि आए' पद से आज निरंतर हो रहे जीवन मूल्यों के ह्रास का संकेत मिलता है।' इस कथन पर अपना मत स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- गोपियों को श्रीकृष्ण के व्यवहार में राजनीति बरतने की शंका हो रही है। प्रेम तो सीधे सच्चे समर्पितजनों का मार्ग है। आज अपने लाभ के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है और कह सकता है। राजनीति में छल-कपट को अनुचित नहीं माना जाता आज का मनुष्य अपना काम निकालने के लिए चतुराई, चालाकी, कूटनीति का प्रयोग खुलेआम करता है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप में यह पद आज हो रहे जीवन मूल्यों के निरादर और उपेक्षा की ओर संकेत करता है।